Sunday, March 25, 2007

मैं ज़िंदा हूँ अभी

किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

मेरे रुकने से मेरी साँसे भी रुक जायेंग

ीफ़ासले और बड़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालो

अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है 'फ़ाकिर'

भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

1 comment:

उन्मुक्त said...

अच्छी कवितायें हैं।